श्री महापात्र
मनुष्य को ग्रह और पितृ कभी अवरोधक नहीं बनते, अवरोधक बनते है केवल खुद के कर्म और अनजाने में की गई गलतियां।
ખાસ નોંધઃ
માઁ વિશ્વંભરી તીર્થયાત્રા ધામ ભાવિક ભક્તો માટે સરકારશ્રી ની COVID - 19 ની ગાઈડ લાઈન અનુસાર દર્શન માટે ખોલવામાં આવેલ છે.
Important Note:
Maa Vishvambhari TirthYatra Dham has been opened for the devotees as per the guideline of COVID-19 of the government.
Maa Vishvambhari TirthYatra Dham - Rabda
Mail : maavishvambhari@gmail.com
मनुष्य को ग्रह और पितृ कभी अवरोधक नहीं बनते, अवरोधक बनते है केवल खुद के कर्म और अनजाने में की गई गलतियां।
जीवन को अपनी आँखों से देखो और खुद के निर्णय सरल भाषामें रखो।
चारित्र्यवान व्यक्ति मजबूत पेड़ जैसा होता है, जिसको तूफान भी झूका नहीं सकता।
गुस्सा दूसरों की बजाय खुदको ही ज्यादा नुकशान पहुँचाता है।
कोई भी व्यक्ति शक्ति पर से विश्वास गवाँता है, तब उस का विनाश होता है।
जब तक जीवन है तब तक जीने की कला शिखते रहो।
जिस में पूरा आत्मविश्वास है, उस की हार में भी जित है।
सत्य को जानने के बाद आचरण में लाना ही जानना सार्थक होगा।
मर्यादा का गुण जिनमें है उनको आदर और सन्मान अपने आप मिलते है।
पानी बहुत कोमल है मगर निरंतर पत्थर पर से बहे तो पत्थर भी घीस जाता है।
आपका हर एक शब्द प्रार्थना और प्रत्येक कर्म यज्ञ बने ऐसा जीवन जीओ।
विजेता वो नहीं जो हारा नहीं, विजेता वो है जिसने प्रयास छोड़ा नहीं।
श्रद्धा एक ऐसा गुण है, जो रात्रि के अंधकार में भी प्रकाश का अनुभव कराती है।
अनुभव मनुष्य को सँवारता है, और लक्ष्य तक पहुँचाता है।
जैसे जंख लोहे को खाती है, वैसे ही आलस मनुष्य को खाता है।
सच्ची शिक्षा हंमेशा प्रकृति के निरंतर सहवास से प्राप्त होती है।
सत्य के रास्ते पे चलनेका सबसे बड़ा फायदा यह है की वहां भीड़ नहीं होती।
सफर कितना भी लम्बा क्यूँ न हो, मगर शुरू तो एक कदम से ही होता है।
दु:ख आने पर आनंद में रहो, सुख आने पर काबू में रहो।
अपने कर्म अच्छे हो तो दुःख को जीवन में कभी स्थान नहीं मिलेगा।
यह संसार सभी हिसाब चुकता करने का ठिकाना है।
साहसिक आदमी रास्ता खोज लेता है, अगर नहीं मिले तो बना भी लेता है।
सच्ची मित्रता आनंद को दुगुना और दुःख को आधा कर देती है।
जो परिवर्तन से गभराते है, वे कभी आगे बढ़ नहीं सकते।
पैसा कमाने के लिए दिमाग चाहिए, और जीवन जीने के लिए संस्कार चाहिए।
जन्म से कोई किसीका मित्र या दुश्मन नहीं होता, ये अपने व्यवहार पर निर्भर होता है।
मनुष्य में छिपी हुई जिज्ञासा कई मौके को जन्म देती है।
जिनमे अटल आत्मविश्वास है, उनकी हार में भी जित है।
निःस्वार्थ भाव से दिया हुवा बलिदान ही सच्ची शौर्यता है।
आपत्ति के वख्त शांत मन से सोचना ही सच्ची धैर्यता है।
अंत तक धैर्य धारण करने वाले को ही सफलता प्राप्त होती है।
निर्भय बनने के बाद ही जीवन में अनेक महान गुण जन्म लेते है।
डर सिर्फ धर्म और कर्म का ही होना चाहिए, और किसी का होना अंधविश्वास है।
ईश्वर महापुरुषों के माध्यम से जगत में सद्विचार का प्रसार करते है।
दुसरों के प्रति उदारता और खुद के प्रति संतोष ही सच्चा जीवन है।
बैर लेने का आनंद शायद क्षणभर टीकेगा, मगर क्षमा करने का गौरव सदा टिकता है।
दूसरे लोग क्या कर रहे है वो देखने की बजाय मेरा फर्ज क्या है ये समजना बहुत जरुरी है।
हमें वो नहीं मिलता जो हमें पसंद होता है, बल्कि वो मिलता है जो हमारे हित में होता है।
अपनी सफलता के पीछे कई लोग होते है, लेकिन निष्फलता के जिम्मेदार सिर्फ हम खुद होते है।
अहंकार और आत्मविश्वास के बिच बहुत पतली दीवार होती है, जिसे पहचानना सीखो।
मौके तो बार बार दस्तक देते है, दरवाजा तो खुद को ही खोलना होता है।
उदार मनुष्य जीवन भर आनंद से जीता है और कंजूस मनुष्य आजीवन दुःखी रहता है।
प्रभु है और सर्वत्र है, यह हम बोलते है मगर हमारा आचरण ऐसा है की मानो प्रभु है ही नहीं।
मनुष्य को जो प्राप्त हुआ है उसका अभिमान नहीं बल्कि गौरव करने से आनंद मिलेगा।
अमीर हो या गरीब, जिसको अपने घरमें शांति प्राप्त होती है वही दुनिया का सुखी मनुष्य है।
हर मनुष्य कभी तो सच्चा होता ही है, क्यूंकि बंध घड़ी भी २४ घंटे में दो बार सही वख्त बताती है।
जीवन के हर मोड़ पे दो रस्ते मिलते है, कोनसे रस्ते पे जाना, वो अपने मन और बुद्धि पे निर्भर होता है।
जैसे एरोप्लेन के लिए रनवे चाहिए, ठीक वैसे ही अच्छी आत्माओं के जन्म के लिए संस्कारी घर चाहिए।
काम करने से पहले ये न सोचो की लोग बातें करेंगे, लोग तो तब भी बाते करेंगे जब आप कुछ नहीं करेंगे।
सूरज न बन सको तो कोई बात नहीं, लेकिन छोटासा दीपक बन कर हजारो दीपक जला सकते हो।
यह कितनी आश्चर्य की बात है की लोग जिंदगी बढ़ाना चाहते है, लेकिन सुधारना नहीं चाहते।
जब कोई अंतःकरण निर्मल रखकर सत्य का आचरण करेगा, तब वो पवित्रता का महान गुण प्राप्त कर सकेगा।
धर्म का अर्थ है नियमो के आधीन रहना, नियमो के आधीन रहने वाला ही सच्चा धार्मिक है।
हर मनुष्य को मौके मिलते ही है, सफल मनुष्य परिणाम देता है, जब की निष्फल मनुष्य कारण देता है।
मन और बुद्धि " माँ " की दी हुई अनमोल भेंट है, जिसका उपयोग बहुत ही सोच कर करना चाहिए।
सफलता देरी से मिले तो निराश न होना चाहिए, क्यूंकि महल बनाने में मकान से अधिक वक्त लगता ही है।
किसी भी परिस्थिति में जाग्रत रहने वाला और कभी अशांत न बनने वाला ही सुखी बन सकता है।
हर एक मुश्किल एक नए मौके को जन्म देती है।
तत्परता मनुष्य को अंतिम लक्ष्य तक ले जाती है।
संघनिष्ठा सफलता का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मनुष्य की महानता उस के सदवर्तन में है।
कर्मो से बनाया हुवा नाम ही उत्तम नाम है।
थोड़े साहस से बहुत सारे मौके जूटा सकते है।
सबसे बड़ी कला यानि जीवन जीने की कला।
संतोषी आदमी दुनिया का सबसे सुखी आदमी है।
अनुमान की बजाय अनुभव निश्चित परिणाम देता है।
अपनी संतान को सम्पत्ति से अधिक संस्कार दें।
सक्षम होने के बावजूद क्षमा देना वो महानता है।
धर्म का मूल उदेश्य इन्सान को मानव बनाना है।
महान कार्य की प्राथमिक जरूरियात मन की मजबूती है।
संतान वंश वृद्धि का प्रतिक नहीं, बल्कि संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रतिक है।
अगर मनुष्य संकल्प करे तो खुदके व्यक्तित्व की संपूर्ण कायापलट कर सकता है।
विचार कितना भी जाग्रत और ऊँचा क्यों न हो, लेकिन जब तक कार्यशील न हो तब तक उसकी कोई कीमत नहीं होती।
ज्ञान और भक्ति दोनों होने चाहिए, ज्ञान से सच और झूठ का पता चलता है, जब की भक्ति से आनंद प्राप्त होता है।
मनुष्य सुखी होने के लिए मकान बदलता है, वस्त्र बदलता है, मोबाइल बदले, फिर भी दु:खी ही रहता है, क्यूंकि वह खुदका स्वभाव नहीं बदलता।
डाली पे बैठे पंछी को डाली टूटने का भय नहीं होता, क्यूंकि उसको डाली से अधिक भरोसा खुद के पंख पर होता है।
जीवन अपनी जरूरत अनुसार ही जीना चाहिए, ईच्छा अनुसार नहीं, क्यूंकि जरूरत तो फ़क़ीर की भी पूरी हो जाती है, और ईच्छा राजा की भी अधूरी रह जाती है।
ये जरुरी नहीं कि मनुष्य हर रोज मंदिर जाए तो धार्मिक बने, लेकिन अच्छे कर्म करे तो वो जहाँ रहे वहाँ मंदिर बन जाता है।
कुछ भी ना करने से कुछ करना बेहतर है, क्यूंकि "कर्तव्य कर्म" न करने वाला सबसे बड़ा पापी है।
मनुष्य की ऊंचाई उसके गुणों से होती है, ऊँची जगह पर खड़े होने से कोई ऊँचा नहीं हो जाता।
वाणी से विवेक और सत्य प्रकट होता है, आचरण से मनुष्य की परख होती है।
अहंकार से फूल सकते हो पर फ़ैल नहीं सकते।
जब मन उदास होता है तब समय बहुत ही लम्बा लगता है, परंतु मन जब प्रफुल्लित होता है तब समय बहुत ही छोटा लगता है।
सुख अर्थात् किसी भी बात का मनपसंद संयोग।
प्रत्येक अच्छी बात पहले मजाक, फिर विरोध और अंत में स्वीकार ली जाती है।
भाग्य उनका साथ देता है, जो प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने के बाद भी, अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहते है।
जिनका स्वभाव अच्छा होता है उन्हें प्रभाव डालना नहीं पड़ता।
आवेश मनुष्य को पीछे धक्का मरता है, संयम मनुष्य को आगे बढ़ाता हे।
धर्म आडम्बर का नहीं, आचरण का विषय है।
निष्फलता (असफलता) सफलता का विरोधी पहलू नहीं, बल्कि सफलता का ही एक भाग है।
हीरा की परख जौहरी कर सकता है, दुसरो के लिये तो पत्थर ही है।
अपेक्षा दुःख को जन्म देती है, आनंदी वो है जिसे किसी प्रकार की अपेक्षा ही नहीं है।
अनुभव ज्ञान का मार्गदर्शक है।
सुख ख़रीदा नहीं जाता और दुःख बेचा नहीं जाता।
दूध का जला छाश को भी फूंक फूंक कर पीता है।
प्रसन्नता की वृति मन की तमाम कलियों को खिली हुई रखती है।
प्रचलन केवल सोना-चांदी का ही हो यह जरुरी नहीं है। सद्गुण का सिक्का विश्वभर में प्रचलित बनता है।
नम्रता का सद्गुण व्यक्ति को धार्मिक बनाता है।
जैसा बोओगे वैसा पाओगे।
किये गये कार्यो का श्रेय दूसरों को देंगे तो कभी भी अहंकार नहीं आयेगा।
किसी को एक समय का भोजन कराओ तो एक दिन पेट भरता है परंतु सही समज देकर उसे कमाई करना सिखा दो तो सारी जिंदगी पेट भरता है।
जीवन की मुसीबतों के बीच रास्ते इसलिये नहीं मिलते क्योंकी हम सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समजकर भ्रम में जीते है।
जीवन में मुसीबतें कैसी आयेगी यह हमारे हाथ में नहीं है, परन्तु उनका सामना कैसे करना यह हमारे हाथ में है।
निराशावादी को अवसर में भी तकलीफ होती है, जबकि आशावादी तकलीफ में भी अकसर मौका ढूंढ लेता है।
श्रद्धा वो ताकत है जो अंधकार में भी प्रकाश का अनुभव कराती है।
मनुष्य के भीतर की जिज्ञासा अवसर को जन्म देती है।
जितनी तीव्रता से जंग लोहे को खाती है उससे भी अधिक तीव्रता से आलस्य मनुष्य को खा जाता है।
भूल हो जाय यह पाप नहीं है, परन्तु समज लेने के बाद भी भूल करना पाप है।
परिवर्तन तथा प्रगति से कोई धर्म नष्ट नहीं होता है बल्कि उसका विकास ही होता है और दृढ बनता है, क्योंकि परिवर्तन ही प्रकृति का सनातन गुणधर्म है।
आवश्यकता और इच्छा के बीच के भेद को जो परख सकता है, वो निरंतर सुख प्राप्त कर सकता है।
उलजन के साथ दौड़ने की अपेक्षा की बजाय आत्मविश्वास के साथ चलना अच्छा है।
मनुष्य को स्वयं की गलतफहमी जितनी आड़े आती है उतनी कोई वस्तु या व्यक्ति आड़े नहीं आती।
अधिकार और कर्तव्य दोनों ऐसी बाबत है जो एक दुसरे से जुडी हुइ है।